भाजपा में अंदरखाने चल रहे खेल से नजर क्यों फेरे है पार्टी हाईकमान

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काशीपुर भाजपा में सब कुछ ठीक चल रहा है किसी तरह की कोई बगावत नही है। जल्द ही “राम और ऊषा” समेत नाराज हुए कार्यकर्ता आपको एक मंच पर एकजुट होकर भाजपा प्रत्याशी त्रिलोक सिंह चीमा को चुनाव लड़ाते हुए दिखेंगे”। यह शब्द काशीपुर विधानसभा में उभरी बगाबत को लेकर पूछे गए प्रश्न के जबाब में प्रदेश भाजपा से जुड़े लगभग सभी बड़े नेताओं के मुख से प्रत्याशी चयन के बाद से ही आप सभी को सुनने को मिल रहे होंगे, पर इन शब्दों में कितनी वास्तविकता है यह भाजपा के स्थानीय नेताओं से लेकर जनता तक भलीभांति समझ रही है। आइए, आपको  कुछ दिन पूर्व लिये चलते है जब काशीपुर सीट से भाजपा प्रत्याशी के रूप में विधायक हरभजन सिंह चीमा के पुत्र त्रिलोक सिंह चीमा के नाम की घोषणा के बाद पार्टी के स्थानीय बड़े चेहरों से लेकर सामान्य कार्यकर्ता तक नें विरोध जताते हुए इस्तीफे की पेशकश कर डाली थी, एकाएक हुए इस विरोध से भाजपा प्रदेश नेतृत्व से लेकर दिल्ली में बैठा हाईकमान तक असमंजस की स्थिति में आ गया था। पार्टी में स्थानीय स्तर पर लगी बगावत की “आग” भले ही

पीसीयू चेयरमैन राम मेहरोत्रा व मेयर ऊषा चौधरी के चुनाव मैदान में न उतरने से कुछ हद ऊपरी तौर पर ठंडी होती दिखाई पड़ रही है, पर अंदर खाने सुलग रही एक चिंगारी चुनाव आने तक भीतरघात के रूप में एक बड़ी ज्वाला बन कर सामने आती भी दिख रही है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कल भाजपा चुनाव प्रचार अभियान के शुभारंभ पर पहुँचे केंद्रीय रक्षा राज्य मंत्री अजय भट्ट की मौजूदगी में स्थानीय कई बडे चेहरे नजर नही आये। बताया गया कि वह अपने व्यक्तिगत कारणों के चलते नही आ पाए है। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि इस चुनावी बेला में जबकि एक एक पल कीमती है क्या व्यक्तिगत कार्यो को टाला नही जा सकता था। सही मायने में हकीकत कुछ और ही है, कार्यक्रम के दौरान मौजूद एक भाजपा नेता ने कहा कि वह सिर्फ पार्टी से बंधे होने के कारण यहाँ मौजूद दिख रहे है। काशीपुर सीट पर हुए 2017 के विधानसभा चुनाव पर हम नजर डालें तो उस चुनाव में सोशल मीडिया पर नामाँकन के बाद से पार्टी के छोटे से लेकर बड़े कार्यकताओं और नेताओं ने प्रत्याशी हरभजन सिंह चीमा के लिये धुंआधार प्रचार शुरू कर दिया था, जो इस बार न के बराबर नजर आ रहा है। कारण क्या है सब समझ रहे है पर यदि कोई नही समझ रहा है तो भाजपा का प्रदेश नेतृत्व। या यूं कहें कि स्थानीय कार्यकर्ताओं की भावनाओं  के आगे वो भी समझने का प्रयास नही करना चाहता है।