भगवान कृ्ष्ण ने बर्बरीक को क्यों दिया था वरदान कि कलयुग के हारे के सहारा श्याम कहलाओगे पढ़ें पूरी कथा

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खाटू श्याम मंदिर राजस्थान के सीकर जिले में है. देश के कोने-कोने से श्रद्धालु खाटू श्याम के दर्शन के लिए आते हैं. श्रद्धालु मीलों की दूरी पैदल तय कर खाटू श्याम की शरण में आते हैं और उनके दर्शन करते हैं. इस मंदिर की बेहद महिमा है. ऐसी मान्यता है कि खाटू श्याम के दर्शन से भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. आइये इस मंदिर से जुड़ी कथा जानते हैं.

खाटू श्याम असल में बर्बरीक हैं. भीम के पोते.भीम और हिडिम्बा का विवाह हुआ था. उनका बेटा घटोत्कच था. घटोत्कच का विवाह दैत्यराज मुरा की बेटी काम्कंठ्का से हुआ था और दोनों के दो पुत्र हुए एक का नाम बर्बरीक और दूसरे का नाम अंजनपर्वा था. पौराणिक मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने बर्बरीक को वरदान दिया था कि कलयुग में वो उनके श्याम नाम से लोकप्रिय होंगे. ये ही वजह है कि खाटू श्याम की लोकप्रियता और श्रद्धालुओं में उनकी आस्था दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है.

पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान श्रीकृ्ष्ण ने प्रसन्न होकर बर्बरीक के कटे हुए शीश को वरदान दिया कि तुम कलयुग में मेरे श्याम नाम से पूजे जाओगे और तुम्हारे स्मरण मात्र से भक्तो का कल्याण होगा.

खाटू श्याम को भगवान श्री कृष्ण के कलयुगी अवतार के रूप में पूजा जाता है. लक्षागृह की घटना के बाद पांडव जब वन-वन भटक रहे थे उस वक्त उनकी मुलाकात हिडिम्बा राक्षसी से हुई. भीम और हिडिम्बा का विवाह हो गया. उनका पुत्र घटोत्कच हुआ और उसका बेटा बर्बरीक. पौराणिक कथा है कि बर्बरीक अपने पिता घटोत्कच से भी शक्तिशाली थे. वो देवी के बड़े भक्त थे. जिनके वरदान से उन्हें तीन दिव्य बाणों की प्राप्ति हुई थी. ये बाण अपने लक्ष्य को भेद कर वापस लौट आते थे. जिस कारण बर्बरीक अजेय हो गये और उनको जितना मुश्किल था.
महाभारत के दौरान बर्बरीक युद्ध देखने के लिए कुरुक्षेत्र जा रहा थे. भगवान श्री कृष्ण जानते थे कि अगर बर्बरीक युद्ध में शामिल हुए तो पांडवों का जीतना मुश्किल है. क्योंकि बर्बरीक अपने तीन बाणों से ही कौरवों और पांडवों की पूरी सेना को खत्म कर सकते थे. बर्बरीक ने पहले ही घोषणा कर दी थी कि वो उस तरफ से लड़ेंगे जो युद्ध हार रहा होगा. ऐसे में भगवान श्रीकृष्ण चिंतित हो गये क्योंकि वो बर्बरीक की शक्ति को पहले ही देख चुके थे. भगवान श्रीकृष्ण के कहने पर बर्बरीक ने एक बाण से वृक्ष के सारे पत्तों पर छेद कर डाला था और भगवान श्रीकृष्ण के पैर के नीचे दबे पत्ते की तरफ भी बढ़ गया था. तब बर्बरीक ने श्रीकृष्ण से कहा था कि प्रभु पैर हटा लीजिये क्योंकि एक पत्ता आपके पैर के नीचे दबा है. श्रीकृष्ण ने जानबूझकर बर्बरीक की शक्ति देखने के लिए यह पत्ता पैर के नीचे दबाया था. इस तरह बर्बरीक की शक्ति देखकर भगवान चकित हो गये और अगले दिन सुबह ब्राह्मण का वेष धारण कर उसके शिविर में गये और उनका शीश दान मांग लिया.

बर्बरीक ने खुशी-खुशी भगवान कृष्ण को अपना शीश दान कर दिया और युद्ध देखने की इच्छा जताई.श्री कृष्ण ने उनके कटे शीश को युद्ध अवलोकन के लिए ऊंचे स्थान पर स्थापित कर दिया. जब 18 दिन तक चले महाभारत युद्ध में पाण्डवों की जीत हुई तो उन्हें घमंड हो गया. तब बर्बरीक के कटे सिर ने पांडवों से कहा कि युद्ध में श्री कृष्ण का सुदर्शन चक्र ही चलता नजर आया थ. इसके बाद बर्बरीक चुप हो गए और आकाश से फूलों की वर्षा होने लगी. तब कृष्ण ने उन्हें वरदान दिया कि कलियुग में बर्बरीक की पूजा श्याम नाम से होगी.

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