आखिर क्यों मुसलमानों के लिए हिंदू बने देवदूत, मंदिर का द्वार खोला, शरण देने पर क्या बोले ????

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कराची, 11 सितंबर: मुसीबत के समय जो काम आता है, उसे कोई इंसान शायद ही कभी भुला पाता है; और जो भुला दे वह इंसान कहलाने लायक भी कहां रह जाता है। पाकिस्तान के सैकड़ों बाढ़ पीड़ित कुछ हिंदू परिवारों को अभी इसी नजरिए से देख रहे हैं, जिन्होंने संकट के समय ना सिर्फ उन्हें बुलाकर अपने मंदिर में शरण दिया, बल्कि उनके खाने-पीने का भी पूरा ख्याल रखा। यहां तक कि बाढ़-पीड़ितों के मवेशियों और बाकी जानवरों की भी अच्छी तरह से देखभाल की। अब इन मुसलमानों का कहना है कि वे ताउम्र अपने हिंदू भाइयों के कर्जदार बन गए हैं। पाकिस्तान में इस साल बाढ़ की वजह से करीब साढ़े तीन करोड़ लोग विस्थापित हुए हैं।

मुसलमानों के लिए हिंदुओं ने खोला मंदिर का द्वार
पाकिस्तान में लाखों लोग प्रलयकारी बाढ़ की चपेट में हैं, जिनमें से अधिकतर किसी भी आवश्यक सहायता से वंचित रह गए। ऐसे में बलूचिस्तान इलाके के एक छोटे से गांव के हिंदुओं ने जो मानवता की मिसाल पेश की है, उससे पता चलता है कि आखिर इंसानियत किसे कहते हैं ? यहां के हिंदुओं ने तमाम बाढ़ पीड़ितों के लिए अपने मंदिर का दरवाजा खोल दिया, जिनमें से ज्यादातर मुसलमान थे। यहां तक कि लाउडस्पीकरों से बाढ़ पीड़ितों से कहा गया कि वह मुसीबत में हैं तो मंदिर का दरवाजा उनके लिए खुल चुका है, जहां वह अपने मवेशियों के साथ आकर शरण ले सकते हैं। इस मंदिर में करीब 200 से 300 शरणार्थियों ने शरण लिया, जिनमें से अधिकतर मुस्लिम हैं। इन सारे लोगों और इनके मवेशियों की जिम्मेदारी हिंदुओं ने अपने कंधों पर उठा रखी थी।
बाबा माधोदास मंदिर बना बाढ़-पीड़ितों का शरण स्थल
दरअसल, बलूचिस्तान इलाके के कच्ची जिले में जलाल खान गांव है, जहां का बाबा माधोदास मंदिर बाकी बाढ़ प्रभावित इलाकों के मुकाबले ज्यादा सुरक्षित था और संकट के घड़ी में बाढ़ पीड़ितों की जान बचाने के लिए उम्मीद की एकमात्र किरण नजर आ रहा था। नारी, बोलन और लेहरी नाम की स्थानीय नदियों में आई बाढ़ की वजह से यह गांव प्रांत के बाकी हिस्सों से पूरी तरह से कट चुका था, जिसके चलते इस दूर-दराज के इलाके के लोगों की जान पर बन आई थी। पाकिस्तान के डॉन अखबार की एक रिपोर्ट के मुताबिक लोगों की इस तकलीफ को देखते हुए स्थानीय हिंदुओं ने बाबा माधोदास मंदिर का दरवाजा बाढ़-पीड़ितों और उनके मवेशियों के लिए खोल दिया।
कौन थे बाबा माधोदास ?
स्थानीय लोगों का कहना है कि बाबा माधोदास भारत-विभाजन के पहले के एक हिंदू संत थे, जिन्हें हिंदू और मुसलमान दोनों का बराबर सम्मान प्राप्त था। भाग नारी से इस गांव में अक्सर जाने वाले इल्ताफ बुजदार ने कहा, ‘वह ऊंट से यात्रा करते थे।’ बुजदार का कहना है कि उनके माता-पिता ने जो कहानियां सुनाई थी, उसके हिसाब से बाबा ने धार्मिक सीमाओं को पार कर लिया था। उनके मुताबिक उनके माता-पिता ने उनसे कहा था, ‘वह लोगों के बारे में उनकी जाति और मजहब के बजाय मानवता के नजरिए से सोचते थे।’
बाढ़ से इलाके में मंदिर ही सुरक्षित बचा था
बाबा माधोदास मंदिर पूरे बलूचिस्तान में हिंदुओं के लिए बहुत ही प्रसिद्ध है, जो कि काफी विशाल और कंक्रीट से बना हुआ है और काफी संख्या में तीर्थयात्री यहां पहुंचते हैं। यह काफी ऊंचाई वाली जमीन पर स्थित है, इसलिए बाढ़ के पानी से आमतौर पर सुरक्षित रह गया। जलाल खान गांव के ज्यादातर हिंदू दूसरे शहरों में रोजगार की तलाश में जा चुके हैं और कुछ हिंदू परिवार मंदिर परिसर में ही रहते हैं, जो इसकी देखरेख करते हैं। इस मंदिर के इंचार्ज 55 वर्षीय रतन कुमार ने कहा, ‘मंदिर में सौ से ज्यादा कमरे हैं, क्योंकि हर साल बलूचिस्तान और सिंध से बड़ी तादाद में तीर्थ यात्रा के लिए यहां पहुंचते हैं।’ इनके बेटे सावन कुमार का कहना है कि बाढ़ की वजह से कुछ कमरों को नुकसान पहुंचा था, लेकिन कुल मिलाकर मंदिर का स्ट्रक्चर पूरी तरह से सुरक्षित है।
लाउडस्पीकर पर दिया गया बुलावा
बाढ़ की वजह से अपना घर छोड़ चुके लोगों का कहना है कि पहले उन्हें हेलीकॉप्टर से खाना पहुंचाया जा रहा था, लेकिन जब से मंदिर परिसर में पहुंच गए, उन्हें हिंदू समुदाय के लोग खाना देने लगे। मंदिर के भीतर मेडिकल कैंप लगाने वाले जलाल खान के एक डॉक्टर इसरार मुघेरी ने कहा, ‘स्थानीय लोगों के अवावा हिंदुओं ने अन्य जानवरों के साथ ही बकरियों और भेड़ों को भी रखा है।’ उन्होंने कहा कि ‘स्थानीय हिंदुओं की ओर से लाउडस्पीकर पर ऐलान किया जा रहा था, मुसलमानों से कहा जा रहा था कि शरण लेने के लिए मंदिर में चले आएं।’
स्थानीय हिंदुओं के ऋणी बन गए हैं’
वहां शरण लेने वालों का कहना है कि इस आफत की घड़ी में उनकी मदद के लिए आगे आने और उन्हें खाना और आश्रय मुहैया कराने के लिए वे स्थानीय (हिंदू) समुदाय के ऋणी बन गए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक स्थानीय लोगों (हिंदुओं) की ओर से, बाढ़ पीड़ितों के लिए मंदिर का दरवाजा खोलना मानवता और धार्मिक सद्भाव का प्रतीक था, जो सदियों से उनकी परंपरा रही है। पाकिस्तान में बाढ़ की वजह से इस साल लगभग 1,400 लोगों की मौत हुई है