शनिदेव को क्यों मिला पिता सूर्य से ज्यादा प्रतापी होने का वरदान, पढ़ें पापों से मुक्ति दिलाने वाली कथा
नौ ग्रहों के स्वामी और न्यायधीश शनिदेव को लेकर बहुत सी कथाएं हिंदु धर्म में मौजूद हैं। शनिदेव को भगवान शिव द्वारा नौ ग्रहों का स्वामी होने का वरदान दिए जाने की कथा भी प्रचलित है। पढ़ें यहां।
सूर्यपुत्र भगवान शनि देव को न्याय और कर्मों का देवता माना जाता है। 9 ग्रहों के समूह में इन्हें सबसे क्रूर और गुस्सैल माना गया है। लेकिन ऐसा हर किसी के साथ नहीं होता। शनिदेव केवल उन्हीं लोगों को परेशान करते हैं, जिनके कर्म अच्छे नहीं होते और भगवान शनिदेव जिस पर महरबान होते हैं उसे धन धान्य से परिपूर्ण कर देते हैं। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार शनि महाराज एक ही राशि में 30 दिनों तक रहते हैं।
ऐसा माना जाता है भगवान शिव ने शनिदेव को नौ ग्रहों में न्यायधीश का कार्य सौंपा है। शनि महाराज की आपने वैसे तो कई कथाएं सुनी होंगी, लेकिन आज हम आपके लिए भगवान शनिदेव के जन्म की अद्भुत कथा लेकर आए हैं। जिसे पढ़कर आप पापों से मुक्ति पा सकते हैं। आइए जानते हैं
हिदु धर्म में भगवान शनि देव के जन्म की अनेकों कथाएं मौजूद है। जिसमें सबसे अधिक प्रचलित कथा स्कंध पुराण के काशीखंण्ड में मौजूद है। इसके अनुसार भगवान सूर्यदेव का विवाह राजा दक्ष की कन्या संज्ञा के साथ हुआ। भगवान सूर्यदेव और संज्ञा से तीन पुत्र वैस्वत मनु, यमराज और यमुना का जन्म हुआ। लेकिन संज्ञा भगवान सूर्यदेव के अत्यधिक तेज और तप सहन नहीं कर पाती थी। सूर्यदेव के तेजस्विता के कारण वह बहुत परेशान रहती थी। इसके लिए संज्ञा ने निश्चय किया कि उन्हें तपस्या से अपने तेज को बढ़ाना होगा और तपोबल से भगवान सूर्यदेव की अग्नि को कम करना होगा। इसके लिए संज्ञा ने सोचा कि किसी एकांत जगह पर जाकर घोर तपस्या करना होगा। संज्ञा ने अपने तपोबल और शक्ति से अपने ही जैसी दिखने वाली छाया को उत्पन्न किया। जिसका नाम सुवर्णा रखा।
इसके बाद संज्ञा ने छाया को अपने बच्चों की जिम्मेदारी सौंपा और उन्होंने तपस्या के लिए घने जंगल में शरण ले लिया। कुछ दिन बा भगवान सूर्यदेव औऱ छाया के मिलन से तीन बच्चों मनु, शनिदेव औरपुत्री भद्रा का जन्म हुआ। यह कथा हिंदु धर्म में काफी प्रचलित है।
दूसरी प्रचलित कथा
वहीं भगवान शनिदेव के जन्म की स्कंध काशी पुराण में एक और कथा मौजूद हैं। जिसके अनुसार कश्यप मुनि के वंशज भगवान सूर्यनारायण की पत्नी छाया ने संतान की प्राप्ति के लिए घोर तपस्या के जरिए भगवान शिव से संतान प्राप्ति का वर मांगा। भगवान शिव के फल से ज्येष्ठ की अमावस्या में भगवान शनिदेव का जन्म हुआ। सूर्य के तेज और तप के कारण शनिदेव का रंग काला हो गया। लेकिन माता की घोर तपस्या के कारण शनि महाराज में अपार शक्तियों का समावेश हो गया।
ऐसे मिला था शनिदेव को नौ ग्रहों के स्वामी का वरदान
कहा जाता है कि एक बार भगवान सूर्यदेव पत्नी छाया से मिलने आए, सूर्यदेव के तप और तेज के कारण शनिदेव महाराज ने अपनी आंखें बंद कर ली और वह उन्हें देख नहीं पाए। भगवान शनि के वर्ण को देख सूर्यदेव ने पत्नी छाया पर संदेह व्यक्त किया औऱ कहा कि यह मेरा पुत्र नहीं हो सकता। इसके चलते शनिदेव के मन में सूर्य के प्रति शत्रुवत भाव पैदा हो गया। इसके बाद शनिदेव महाराज ने भगवान शिव की कड़ी तपस्या की। भगवान शिव ने शनिदेव की कड़ी तपस्या से प्रसन्न होकर वरदान मांगने को कहा, जिस पर शनिदेव ने भगवान शिव से कहा कि सूर्यदेव उनकी माता को प्रताड़ित और अनादर करते हैं। इससे उनकी माता को हमेशा अपमानित होना पड़ता है। उन्होंने सूर्य से अधिक शक्तिशाली और पूज्यनीय होने का वरदान मांगा। इस पर भगवान शिव ने शनिदेव को वरदान दिया कि वह नौ ग्रहों के स्वामी होंगे यानि उन्हें सबसे श्रेष्ठ स्थान की प्राप्ति होगी। इसके साथ ही सिर्फ मानव जाति ही नहीं बल्कि देवता, असुर, गंधर्व, नाग और जगत का हर प्रांणि जाति उनसे भयभीत होगा।
ज्योतिशास्त्र के अनुसार शनि ग्रह
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार शनि की धरती से दूरी लगभग नौ करोड़ मील है औऱ इसकी चौड़ाई एक अरब बयालीस करोड़ साठ लाख किलोमीटर है। इसका बल धरती से पंचानवे गुना अधिक है। शनि को सूर्य की परिक्रमा करने में उन्नीस वर्ष लगते हैं
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