ये महिला कभी घूमा करती थी लाल बत्ती की सरकारी कार में, आज बकरियां चराने को मजबूर
ये बात तो 100% सत्य है कि समय बड़ा बलवान होता है इसके आगे किसी की एक नहीं चलती चाहे इन्सान कितना भी बलवान क्यों ना हो और कितना भी जोर लगाए. क्योकि जब किसी के जीवन में बुरा वक्त आता है तो वो इन्सान उस काम को करने के लिए भी तैयार रहता है जिसे वो कभी मंजूर नहीं होता. इसी के चलते आज हम आपको एक ऐसी ही अनोखी घटना से आपको रूबरू कराने जा रहे है जिसके बारे में जानकर आपके होश उड़ जाएंगे और आप कहेंगे भगवान ऐसे दिन दुश्मनों को भी ना दिखाए. तो चलिए जानते हैं क्या है ये पूरा मामला??
दरअसल ये हैरान कर देने वाली घटना शिवपुरीबदरवास की है जहा जूली आदिवासी जिला अध्यक्ष थी. लेकिन वक्त का चक्कर ऐसा घुमा की वह राजा से रंक बन गयी. जहा कभी लाल बत्ती में घूमने वाली जूली सड़क पर आ गई. जुली के जीवन में एक समय था जब लोग उसे मैडम-मैडम कहकर बुलाते थे. लेकिन एक टाइम में जिला अध्यक्ष रह चुकी जूली आज गुमनामी की जिंदगी जीने को मजबूर है. वह आज अपने परिवार के पालन पोषण के लिए रामपुरी के ग्राम लुहारपुरा में जद्दोजहद कर रही है. कहा जाता है की अब जिला पंचायत अध्यक्ष के पद पर आसीन रह चुकी जूली गरीबी रेखा के नीचे आती है. जूली को इंदिरा आवास योजना के तहत घर भी मिला लेकिन बढ़ते भ्रष्टाचार के कारण उसका घर उसका नहीं रह पाया. इस वजह से आज जूली अदद आवास तक के लिए मोहताज हैं.
बताया जाता है की जूली आदिवासी को साल 2005 में वार्ड क्रमांक-3 से कोलारस के पूर्व विधायक रामसिंह यादव द्वारा जिला पंचायत सदस्य बनाया गया था. वही जिला पंचायत सदस्य बनने से पहले जूली मजदूरी का काम किया करती थी. जिला पंचायत की सदस्य बनने के बाद शिवपुरी के पूर्व विधायक वीरेंद्र रघुवंशी ने उसे जिला पंचायत अध्यक्ष भी बना दिया. पांच सालों तक राज्य मंत्री का दर्जा मिलने की वजह से लोग उसे मैडम कहकर बुलाते थे. लेकिन आज वहीं मैडम अपने परिवार का पालन पोषण करने के लिए भेड़-बकरी चरा रही है.
दरअसल सरकारी दस्तावेजों में तो उसे इंदिरा आवास योजना का लाभ मिल चुका है वो सरकारी जमीन पर बनी उसकी झोपड़ी में रहना संभव नहीं है. यह झोपड़ी किसी के रहने लायक नहीं है. जूली का कहना है की इस योजना की क़िस्त तो उसे जारी कर दी गयी थी लेकिन उसे एक फूटी कौड़ी भी नहीं मिली. इसलिए ही घर बनाने के लिए खरीदी गयी ईंटें जस की तस रखी हुई हैं. और उसे केवल बकरी चराने के लिए 40 रुपये महीने दिए जाते हैं.
जानकारी के मुताबिक जुली फिलहाल में रोजाना 40 बकरियों को चराकर अपने परिवार का पालन पोषण कर रही है. जब बकरियां नहीं होती तब वह मजदूरी करने चली जाती हैं और जब मजदूरी भी नहीं मिलती तो परिवार का पेट पालने के लिए उसे गुजरात जाना पड़ता है. जूली कहती है की जिन लोगों की मदद से वो उंची पोस्ट पर पहुची और पहचान हासिल की है, अब वो लोग भी उसे अब नहीं पहचानते हैं. जूली ने कहा की वह प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत स्वीकृत हो रहे मकानों के लिए जब सेक्रेट्री और जनपद पंचायत के पास पहुंची तो अधिकारियों ने उसे भगा दिया.
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