अटूट आस्था और विश्वास का केन्द्र है रुद्रप्रयाग स्थित गणेशजी का मुंड कटा मंदिर

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पिछली 31 अगस्त से शुरू हुआ गणेशोत्सव शुक्रवार 9 सितम्बर को देश भर में गणपति के विसर्जन के साथ समाप्त होने जा रहा है। इस समय देशभर में गणेश उत्सव की धूम है। रिद्धि सिद्धि के दाता गणेशजी जिस पर प्रसन्न हो जाएं उसके जीवन में कभी विघ्न, बाधा नहीं आती। सुख-समृद्धि का वास होता है। चारों तरफ गणपति के मंदिरों, जगह-जगह बने पंडालों (विशेष रूप से मुम्बई में) दर्शन के लिए लंबी कतारें लगी हैं। 9 सितंबर 2022 को गणपति का विसर्जन किया जाएगा, 10 सितम्बर से श्राद्ध पक्ष की शुरूआत होने वाली है, उससे पहले हर कोई भगवान गणेश का आशीर्वाद पाना चाहता है।
यूं तो देश भर में गणेशजी के कई प्रसिद्ध मंदिर है, लेकिन हमारे देश में गणेशजी का एक ऐसा मंदिर भी है जहाँ गणपति का सिर धड़ से अलग है। कहने का तात्पर्य यह है कि यह बिना सिर वाले गणेशजी का मंदिर है, जहाँ सिर्फ उनके धड़ की पूजा की जाती है। यहां बिना सिर वाले गणेश प्रतिमा की पूजा की जाती है। इस मंदिर की ख्याति न सिर्फ भारत अपितु विदेशों में भी बहुत है। देशी पर्यटकों के साथ-साथ भारत आने वाला हर विदेशी पर्यटक इस मंदिर के दर्शन करने का प्रयास जरूर करता है।

गणपति की बिना सिर वाली मूर्ति
गजानन का ये विचित्र मंदिर देवभूमि उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। इसका नाम मुंड कटिया मंदिर है। यहां मौजूद बिना सिर वाली गणेश जी की मूर्ति आकर्षण का केन्द्र है। धर्म ग्रंथों का कहना है कि यह वो स्थान है जहाँ पर भगवान गणेश का उनके पिता भगवान शिव शंकर भोलानाथ ने सिर धड़ से अलग कर दिया था। यहां आज भी गणेश जी की सिर कटी मूर्ति विराजमान है। भगवान भोलेनाथ ने ऐसा सख्त कदम क्यों उठाया था उसके पीछे भी पौराणिक कथा है, जिसे हम अपने पाठकों को बताने जा रहे हैं।

पौराणिक कथा के अनुसार पुत्र प्राप्ति के लिए माता पार्वती ने अपने मैल और उबटन से एक प्रतिमा का निर्माण किया था। इस मूर्ति में माँ पार्वती ने जान डाल दी थी। धार्मिक मान्यता है कि इसी से गणपति की उत्पत्ति हुई थी। एक समय जब माता पार्वती गौरी कुंड में स्नान के लिए जा रही थी तो उन्होंने गजानन को बाहर खड़ा कर दिया और कहा कि कोई भी अंदर प्रवेश न करे।

माता की आज्ञा का पालन करते हुए गणेश डटे रहे। कुछ समय पश्चात महादेव वहां पहुंचे और अंदर जाने की कोशिश करने लगे। गणेश ने भोलेनाथ को अन्दर जाने से मना कर दिया। भगवान शिव के बार-बार समझाने और यह कहने के बाद भी कि वे माता पार्वती के पति भोलेनाथ हैं, गणेश ने उनकी बात नहीं। तमाम प्रयास करने भी भगवान शिव को गणेश ने अंदर नहीं जाने दिया। अपने तमाम प्रयासों को विफल होता देख शिव शंकर क्रोधित हो उठे। पिता-पुत्र में युद्ध छिड़ गया। परिणाम स्वरूप शंकर भगवान ने गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया। भगवान शंकर इस बात से अंजान थे कि गणेश उनके पुत्र हैं। देवी पार्वती को जब यह बात पता चली तो वे शिव जी पर क्रोधित होकर विलाप करने लगीं। कहा जाता है कि माता पार्वती की जिद के आगे झुकते हुए भगवान शंकर ने अपने गणों को आज्ञा दी कि जो कोई भी आपसे पहले टकराता है उसका सिर लेकर आओ। गणों को सबसे पहले एक हाथी टकराता है, जिसका सिर लाकर वे भगवान शिव को देते हैं। मान्यता है कि इसके बाद शिव जी ने गणपति को हाथी का सिर लगाकर पुन: जीवित किया था।