लक्ष्य सेन ने बढ़ाया देश का गौरव, बैडमिंटन से जुड़ा है पूरा परिवार, अब तक जीत चुके इतने खिताब

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देहरादून: भारतीय बैडमिंटन टीम ने थॉमस कप जीतकर जो इतिहास रचा है, उसे 1983 में भारतीय क्रिकेट टीम की उस जीत के बराबर आंका जा रहा है, जब कपिल देव की कप्तानी में भारत ने पहली बार विश्व कप जीता था। भारतीय बैडमिंटन टीम के युवा खिलाड़ियों ने वो काम कर दिखाया, जो पिछले 74 सालो में कोई नहीं कर पाया था। इस टीम में एक से बढ़कर एक शानदार प्रतिभाएं हैं, जिन्होंने देश को गौरवान्वित कराया। उन्हीं में से एक हैं देवभूमि उत्तराखंड के लक्ष्य सेन।


लक्ष्य सेन मूल रूप से अल्मोड़ा के रहने वाले हैं। थॉमस कप जीतने में टीम में शामिल हर खिलाड़ी का योगदान रहा, लेकिन जीत के आधार बना देवभूमि का बेटा लक्ष्य सेन। लक्ष्य सेन मैच के पहले सेट में 9-21 से हार गए थे। लेकिन, इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। जोरदार वापसी करते हुए इंडोनेशिया के ओलम्पिक मेडलिस्ट गिंटिंग को 21-17 और 21-16 से लगातार दो सेटों में हराकर मैच अपने नाम कर दिया। उसके बाद भारतीय खिलाड़ियों ने पीछे मुड़कर नही देखा।


अल्मोड़ा जिले के लक्ष्य सेन का जन्म 16 अगस्त 2001 को हुआ। उनका पूरा परिवार ही बैडमिंटन के लिए सर्पित रहा है। उनके दादा सीएल सेन जिला परिसद में नौकरी करते थे। दादा ने सिविल सर्विसेस में राष्ट्रीय स्तर की बैडमिंटन प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया था। कई खिताब अपने नाम किए। लक्ष्य सेन के पिता डीके सेन देश के उम्दा कोचों में गिने जाते हैं। पहले वह साईं के कोच थे। लक्ष्य सेन के बड़ा भाई चिराग सेन भी शटलर हैं। वह भी कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय अवार्ड जीत चुके हैं।


लक्ष्य को छह साल की उम्र में उनके दादा ने ही पहली बार बैडमिंटन कोर्ट में उतारा था। लक्ष्य ने जिला, राज्य के बाद राष्ट्रीय स्तर पर कई पदक अपने नाम किए। इसके बाद उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी मजबूत दस्तक दी। 10 साल की उम्र में लक्ष्य ने इजराइल में पहला अंतरराष्ट्रीय खिताब स्वर्ण पदक के रूप में जीता था। वह अपने बड़े भाई अंतरराष्ट्रीय बैडमिंटन खिलाड़ी चिराग से भी प्रेरित हुए। उनकी मां निर्मला सेन पहले प्राइवेट स्कूल में पढ़ाती थी।
बच्चों को बेहतर शटलर बनाने के लिए पिता ने सांई से वीआरएस लिया और मां ने अपनी नौकरी छोड़ दी और बगलुरू में शिफ्ट हो गए। माता ने भी स्कूल छोड़ बच्चों के प्रशिक्षण के लिए परिवार समेत बंगलुरू में शिफ्ट हो गए थे। वहां लक्ष्य और चिराग ने प्रशिक्षण लिया और पिता डीके सेन भी प्रकाश पादूकोण अकादमी में बतौर सीनियर कोच जुड़ गए।
लक्ष्य सेन आल इंग्लैंड बैडमिंटन चैंपियनशिप के फाइनल में पहुंचने वाले पांचवें भारतीय शटलर हैं। उनसे पहले 1947 में प्रकाश नाथ, 1980 में प्रकाश पादुकोण और 2001 में पुलेला गोपीचंद चैंपियनशिप के फाइनल में पहुंचे थे। महिला वर्ग में साइना नेहवाल भी 2015 में इस प्रतियोगिता का फाइनल खेल चुकी हैं। लक्ष्य सेन बैडमिंटन के विख्यात विमल कुमार, पुलेला गोपीचंद और योंग सूयू से प्रशिक्षण ले चुके हैं।
लक्ष्य ने लिनिंग सिंगापुर यूथ इंटरनेशनल सीरीज में स्वर्ण, इजरायल जूनियर इंटरनेशनल के डबल और सिंगल में स्वर्ण, इंडिया इंटरनेशनल सीरीज के सीनियर वर्ग में स्वर्ण, योनेक्स जर्मन जूनियर इंटरनेशनल में रजत, डच जूनियर में कांस्य, यूरेशिया बुल्गारियन ओपन में स्वर्ण, ऐशिया जूनियर चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक, यूथ ओलंपिक में रजत, वर्ल्ड चौंपियनशिप में कांस्य पदक समेत कई राष्ट्रीय और अंर्तराष्ट्रीय चौंपियनशिप में शानदार प्रदर्शन करते हुए भारत को पदक दिलाया है। लक्ष्य सेन इसी साल मार्च में हुए योनेक्स आल इंग्लैंड बैडमिंटन चैंपियनशिप के फाइनल में पहुंच गए थे। लेकिन, फाइनल में कड़े मुकाबले में वह दुनिया के नंबर एक और ओलंपिक चैंपियन विक्टर एक्सेलसेन से वह मात खा गए।