कामनाएं पूरी करने वाला व्रत कामदा एकादशी 12 अप्रैल को
चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को कामदा एकादशी कहा जाता है। यह एकादशी 12 अप्रैल 2022 मंगलवार को आ रही है। यह नव संवत्सर की पहली एकादशी होती है। कामदा एकादशी का व्रत करने से समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति होती है और यह प्रेत योनि तक से मुक्ति दिला देती है। इस एकादशी का व्रत करने से वाजपेय यज्ञ के समान पुण्य प्राप्त होता है। जाने-अनजाने में किए गए समस्त पापों से मुक्ति दिलाकर मोक्ष प्रदान करने वाली कही गई है। कामदा एकादशी के दिन लौंग ग्रहण करने का विशेष महत्व होता है।
कामदा एकादशी व्रत-पूजा
कामदा एकादशी के दिन प्रात:काल स्नानादि करके घर के पूजा स्थल को साफ-स्वच्छ करके व्रत का संकल्प लेना चाहिए। इसके बाद भगवान विष्णु की पूजा करें। पूजा में भगवान विष्णु को फल, फूल, दूध, तिल और पंचामृत आदि सामग्री अर्पित करें। पूजा के बाद कामदा एकादशी व्रत की कथा सुनें या पढ़ें। एक समय फलाहार ग्रहण कर सकते हैं। इस दिन लौंग विशेष रूप से ग्रहण करना चाहिए। अगले दिन द्वादशी के दिन ब्राह्मण भोज और दक्षिणा देकर इस व्रत का पारण करना चाहिए।
मंगलवार को आने का महत्व
इस बार कामदा एकादशी मंगलवार को आ रही है। मंगलवार के दिन भगवान विष्णु का पूजन कर्ज मुक्ति दिलाने वाला होता है। इस दिन भगवान लक्ष्मीनारायण का पूजन कर विष्णुसहस्रनाम का पाठ करें, श्रीयंत्र और मंगल यंत्र का पूजन करें। कर्ज मुक्ति होगी। आर्थिक स्थिति में सुधार होगा।
कामदा एकादशी व्रत कथा
धर्मराज युधिष्ठिर के आग्रह पर भगवान श्रीकृष्ण ने कामदा एकादशी व्रत का माहात्म्य बताया। प्राचीनकाल में भोगीपुर नामक एक नगर था। वहां अनेक ऐश्वर्यो से युक्त पुंडरीक नाम का एक राजा राज्य करता था। भोगीपुर नगर में अनेक अप्सरा, किन्नर तथा गंधर्व सुख पूर्वक निवास करते थे। उनमें से एक जगह ललिता और ललित नाम के दो स्त्री-पुरुष अत्यंत वैभवशाली घर में निवास करते थे। उन दोनों में अत्यंत स्नेह था, यहां तक किअलग-अलग हो जाने पर दोनों व्याकुल हो जाते थे।
‘गंधर्वो सहित ललित भी गान कर रहा’
एक समय पुंडरीक की सभा में अन्य गंधर्वो सहित ललित भी गान कर रहा था। गाते-गाते उसको अपनी प्रिय ललिता का ध्यान आ गया और उसका स्वर भंग होने के कारण गाने का स्वरूप बिगड़ गया। ललित के मन के भाव जानकर कार्कोट नामक नाग ने पद भंग होने का कारण राजा को बता दिया। तब पुंडरीक ने क्रोधित होते हुए कहा कि तू मेरे सामने गाता हुआ अपनी स्त्री का स्मरण कर रहा है। अत: तू कच्चा मांस और मनुष्यों को खाने वाला राक्षस बनकर अपने किए कर्म का फल भोगेगा।
मुख से अग्नि निकलने लगी
पुंडरीक के श्राप से ललित उसी क्षण महाकाय विशाल राक्षस हो गया। उसका मुख अत्यंत भयंकर, नेत्र सूर्य-चंद्रमा की तरह प्रदीप्त तथा मुख से अग्नि निकलने लगी। उसकी नाक पर्वत की कंदरा के समान विशाल हो गई और गर्दन पर्वत के समान लगने लगी। सिर के बाल पर्वतों पर खड़े वृक्षों के समान लगने लगे तथा भुजाएं अत्यंत लंबी हो गई। उसका शरीर आठ योजन के विस्तार में हो गया। इस प्रकार राक्षस होकर वह अनेक प्रकार के दु:ख भोगने लगा
तुम कौन हो और यहां किस लिए आई हो?
जब उसकी प्रियतमा ललिता को यह वृत्तांत मालूम हुआ तो उसे अत्यंत खेद हुआ और वह अपने पति के उद्धार का उपाय सोचने लगी। वह राक्षस अनेक प्रकार के घोर दु:ख सहता हुआ घने वनों में रहने लगा। उसकी स्त्री उसके पीछे-पीछे जाती और विलाप करती रहती। एक बार ललिता अपने पति के पीछे घूमती-घूमती विंध्याचल पर्वत पर पहुंच गई, जहां पर श्रृंगी ऋषि का आश्रम था। ललिता शीघ्र ही श्रृंगी ऋषि के आश्रम में गई और उनो विनीत भाव से प्रार्थना करने लगी। उसे देखकर श्रृंगी ऋषि बोले किहे सुभगे! तुम कौन हो और यहां किस लिए आई हो?
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