विकास और वादों की पोल खोलती छत पर झूलती विद्युत लाइनें

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जन प्रतिनिधि अथवा राजनीतिक पार्टियां भले ही अपने घोषणा पत्र में आम जन की सुरक्षा एवं बेहतरी के कितने बड़े-बड़े वादे करती रही हो, लेकिन हकीकत ऐसे वादों की पोल खोल ही देती है। “सबका साथ-सबका विकास” “जन-जन तक आपकी सरकार” आदि ऐसे कई नारे चुनावी वक्त में नेताओं की जुबांनी सुनने को मिल जाते है। बावजूद ब्यवस्था का साथ और विकास महज चंद प्रभावशाली लोगो तक ही सीमित रहा है। जिसका ज्वलन्त उदाहरण दमुवांढूंगा, जवाहरज्योति में देखने को मिला है। जहां मकान की छत पर साधारण टेक के सहारे डाली गई बिजली की लाइन को हटाने की गुजारिश स्थानीय लोगो द्वारा शासन-प्रशासन सहित जन प्रतिनिधियों से भी कई बार करी गई। लेकिन किसी बढ़े हादसे को दावत देती इस स्थिती से अधिकारी व जन प्रतिनिधी आंख मूंदे बैठे रहे।

जब घने जंगल से सटे इस क्षेत्र के विकास को देखने पहुंची तो ब्यवस्था की पोल खोलती मकान की छत से महज कुछ ही फिट ऊपर साधारण टेक के सहारे झूलती यह विद्युत लाइन देखने को मिली। पूछने पर पता चला कि प्रतिनिधी आते तो है, लेकिन यह कह कर चले जाते है कि लाइन तो पहले से ही थी, पर मकान बाद में बनाया गया।
अब सवाल इस बात का है कि यदि यहां बिजली की लाइन पहले से थी तो इसके नीचे बन रहे मकान को बनने से पूर्व रोका क्यों नहीं गया? क्या मकान मालिक द्वारा सम्बन्धित विभाग के अधिकारियों को सुविधा शुल्क देकर यह निर्माण कराया गया जिस वजह से अधिकारी निर्माण होता देख भी आंखे मूंदे रहें? अब यदि निर्माण हो चूका है तो सम्बन्धित विभाग एवं चुनावी बरसात में टर्र-टर्र करने वाले प्रतिनिधि इस तरफ आंखे मूंद, क्या किसी बढ़ी दुर्घटना के इंतजार में हाथ पर हाथ धरा बैठे है?


बताते चलें कि तत्कालीन कांग्रेस सरकार में स्थानीय विधायक एवं काबीना मंत्री रहते हुए डॉ इंदिरा हृदयेश द्वारा वर्ष 2017 में इस क्षेत्र को राजस्व ग्राम का दर्जा दिलाते हुए नगर निगम में सम्मिलित तो करवा दिया, लेकिन उनके जाने के बाद इस क्षेत्र की जनता को जन प्रतिनिधियों द्वारा सिर्फ सुनहरे सपने ही देखने को मिले है। आज जब चुनाव नजदीक है प्रत्येक दल के नेता यहां पहुंच कर बोट की उम्मीद तो कर रहे लेकिन दुर्घटना को दावत देती इस घटना पर ध्यान देने की जहमत तक नहीं उठाते।