आइए हम आपको बताते हैं वृंदावन जाते हैं तो महालक्ष्मी के दर्शन करें महालक्ष्मी ग्राम (बेलवन) मैं स्थित हैं कथा”पढ़ें

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रिपोर्टर संतोष कुमार वृंदावन

“महालक्ष्मी ग्राम (बेलवन) की कथा”

वृंदावन से यमुना पार मांट की ओर जाने पर रास्ते में आता है बेलवन। पूर्वकाल में यहाँ बेल के वृक्षों का घना जंगल हुआ करता था इसी कारण इस स्थान को बेलवन के नाम से जाना जाता है।

बेलवन में ही है महालक्ष्मी ग्राम जहाँ स्थित है माता महालक्ष्मी का मन्दिर। कहते हैं इस स्थान पर माता महालक्ष्मी आज भी गोपी-भाव पाने के लिये तपस्या कर रही हैं।

महालक्ष्मी मन्दिर की प्रख्यात कथा के बारे में यहाँ के पुरोहित बताते हैं कि, “जिस समय व्रज में भगवान् श्रीकृष्ण ने अवतार लिया उस समय सभी देवगण विभिन्न रूप धर कर वृंदावन में आकर बस गये, जिससे देवलोक खाली-खाली सा दिखने लगा। जिस समय महादेव भी महारास के दर्शन करने के लिये वृंदावन भूमि के लिये चल दिये तो माता महालक्ष्मी को शंका हुई कि आखिर सभी देवगण कहाँ और क्यों जा रहे हैं?

अपनी शंका के निवारण के लिये माता महालक्ष्मी ने भगवान् विष्णु से प्रश्न किया कि सभी देवगण देवलोक छोड़कर वृंदावन में क्यों जा रहे हैं?

भगवान् श्रीहरि विष्णु ने माता महालक्ष्मी को बताया कि, वृंदावन में एक आठ साल का बालक महारास कर रहा है वही देखने सब देवगण वहाँ जा रहे हैं।

माता महालक्ष्मी को इस बात पर विश्वास नहीं हुआ कि एक आठ वर्ष का बालक महारास का आयोजन कैसे कर सकता है अपनी उत्सुकता को शान्त करने के लिये तथा महारास देखने के लिये माता महालक्ष्मी भी बैकुंठ से वृंदावन के लिये चल दीं।

वृंदावन में जब राधाजी को इस बात की सूचना मिली तो राधाजी चिन्तित हो उठीं। उन्हें चिन्तित देख श्रीकृष्ण ने उनसे उनके चिन्तित होने का कारण पूछा।

राधाजी ने कहा – माधव! यदि महालक्ष्मी यहाँ आ गयीं और वे भी महारास में शामिल हो गयीं तो उनमें भी गोपीभाव का उदय हो जायेगा और यदि महालक्ष्मी में गोपीभाव का उदय हो गया तो संसार का सारा वैभव ही नष्ट हो जायेगा। सारा संसार ही बिना लक्ष्मी के वैभव विहीन होकर बैरागी बन जायेगा और यदि ऐसा होगा तो यह संसार कैसे चलेगा? माधव आप कैसे भी करके महालक्ष्मी को वृंदावन में आने से रोकिये।

माता महालक्ष्मी जब बेलवन पहुँचीं, तभी वहाँ श्रीकृष्ण एक ग्वाल बालक का रूप लेकर आ गये।

उन्होंने माता महालक्ष्मी से पूछा, “आप कहाँ जा रही हैं?”

महालक्ष्मी जी ने कहा, “मैं उस आठ वर्ष के बालक को देखने जा रही हूँ जिसके लिये सभी देवगण वृंदावन में आये हैं और उसके आयोजित महारास में शामिल होने के लिये स्वयं महादेव भी वृंदावन आ गये हैं। मैं भी उस बालक के साथ महारास का आनन्द लेना चाहती हूँ।”

ग्वाल रूपी श्रीकृष्ण ने कहा, “आप वृंदावन नहीं जा सकती हैं।”

इस बात से महालक्ष्मीजी क्रोधित होकर बालक से बोलीं, “हे ग्वाल! तू शायद मुझे जानता नहीं है, मैं श्रीहरि विष्णु की भार्या लक्ष्मी हूँ मेरे वैभव से सम्पूर्ण संसार चलता है, और तू मुझे जाने से रोक रहा है।”

ग्वाल रूपी श्रीकृष्ण बोले, “देवी! आप अपने इस घमण्ड और क्रोध के साथ महारास में प्रवेश नहीं पा सकती हैं। महारास में प्रवेश पाने के लिये आपको इन सबका त्याग करके अपने भीतर गोपीभाव लाना होगा तभी आप महारास में प्रवेश पा सकती हैं।”

महालक्ष्मी वहीं पर गोपीभाव की प्राप्ति के लिये तप करने बैठ गयीं।

कुछ समय पश्चात ग्वाल रूपी श्रीकृष्ण ने महालक्ष्मीजी से कहा, “देवी! मुझे भूख लगी है कुछ खाने को दीजिये।”

महालक्ष्मी ने कहा, “मेरे पास तो यहाँ भोजन के लिये कुछ भी नहीं है।”

फिर महालक्ष्मी ने अपनी साड़ी से अग्नि उत्पन्न कर ग्वाल रूपी श्रीकृष्ण के लिये खिचड़ी बना कर दी।

पुरोहितजी कहते हैं – आज भी महालक्ष्मी वहीं पर तप कर रही हैं। आज भी ग्वाल रूप में श्रीकृष्ण उनके पास बैठे दिखते हैं तथा उन्हें खिचड़ी का भोग लगता है।

पौष मास में प्रत्येक गुरुवार के दिन यहाँ मेला लगता है और स्थान-स्थान पर चूल्हा बना कर खिचड़ी तैयार कर भोग लगाया जाता है तथा प्रसाद बाँटा जाता है।

                                             - चन्द्र प्रकाश शर्मा           पुजारी 

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