राधारानी की नगरी बरसाने में कल खेली जाएगी लड्डुओं की होली, जानें कैसे शुरू हुई परंपरा

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होली का त्यौहार आने वाला है और कान्हा की नगरी में होली का उल्लास भी शुरू हो गया है। ब्रज की होली देखने के लिए दुनिया भर से लोग आते हैं क्योंकि यहां केवल रंगों से होली नहीं खेली जाती बल्कि यहां लड्डुओं, फूलों और लठमार होली भी खेली जाती है। ब्रज में होली का उत्सव अन्य क्षेत्रों से पहले शुरू हो जाता है। इसी क्रम में 10 मार्च यानी गुरुवार को राधा रानी की नगरी बरसाना के श्रीजी मंदिर में लड्डू की होली खेली जाएगी और इसके अगले दिन यानी 11 मार्च को लट्ठमार होली खेली जाएगी। आइए जानते हैं आखिर यह परंपरा कैसे शुरू हुई और इस होली में क्या खास है…

इस तरह शुरू हुई लड्डू होली खेलने की परंपरा
लड्डू होली की परंपरा के पीछे एक पौराणिक कथा बताई जाती है। कथा के अनुसार, द्वापर युग में बरसाने से होली खेलने का निमंत्रण लेकर सखियों को नंदगांव भेजा गया था। राधारानी के पिता वृषभानुजी के न्यौते को कान्हा के पिता नंद बाबा ने स्वीकार कर लिया। नंद बाबा ने एक पुरोहित जिसे पंडा भी कहा जाता है, उनके हाथों एक स्वीकृति का पत्र भी भेजा।
बरसाने में वृषभानुजी ने नंदगांव से आए पुरोहित का काफी आदर सत्कार किया और थाल में रखे लड्डू खाने के दिए। साथ ही बरसाने की गोपियों ने परोहित को गुलाल भी लगा दिया था। फिर क्या था पुरोहित के पास गुलाल तो था नहीं तो उन्होंने थाल में रखे लड्डुओं को ही गोपियों को मारना शुरू कर दिया। तभी से यह लीला लड्डू होली खेल जाने की परंपरा शुरू हई। इसी परंपरा को बरसाने और नंदगांव के लोग आज तक निभाते आ रहे हैं।
लड्डू होली खेलने से पहले होता है यह आयोजन
मान्यता के अनुसार, लड्डू होली के दिन सुबह बरसाना की राधा न्योता लेकर नंद भवन पहुंचती हैं, जहां सखी रूप राधा का धूमधाम से स्वागत किया जाता है। इसके बाद नंदगांव से शाम के समय पुरोहित रूपी सखा को राधा रानी के महल भेजा जाता है, जो होली के निमंत्रण को स्वीकार करते हैं और फिर उनका लड्डुओं से आदर सत्कार किया जाता है। लड्डू होली खेलने से पहले श्रीजी मंदिर में लाडलीजी को लड्डू अर्पित किए जाते हैं और फिर दर्शन और होली खेलने आए भक्तों पर लड्डुओं की बौछार की जाती है। इस होली को खेलने के लिए करीब 40 से 50 टन लड्डुओं की बौछार की जाती है। फिर इसके अगले दिन लठमार होली खेलने का आयोजन किया जाता है। लठमार होली में महिलाएं पुरुषों पर लाठियां बरसाती हैं और पुरुष हंसते हुए ढाल से अपना बचाव करते हैं। इस मनमोहक दृश्य को देखने के लिए देश विदेश से हजारों की संख्या में लोग बरसाने आते हैं।
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11 मार्च को खेली जाएगी लठमार होली
राधा कृष्ण के प्रेम में सराबोर होकर सभी लोग होली खेलते हैं और होली के भजन गाए जाते हैं। मंदिर के प्रांगण में भगवान कृष्ण और राधा रानी के प्रेम में मग्न होकर नाचते गाते हैं। इस परंपरा का पालन द्वापर युग से लेकर आज तक किया जा रहा है। बता दें कि बरसाना की विश्व प्रसिद्ध होली का देश-विदेश के लोगों को भी सालभर का इंतजार रहता है। बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां लट्ठमार होली को भी देखने के लिए आते हैं। इस बार 11 मार्च को लट्ठमार होली खेली जानी है। बरसाना की हुरियारिनों में होली खेलने को लेकर गजब का उत्साह रहता है।