(चुनावी महासमर) तो इस वजह से पवन चौहान हुए बागी, निरंतर अनदेखी बनी मुख्य वजह….

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लालकुआं
रिपोर्ट:- शैलेन्द्र कुमार सिंह

लालकुआं में भारतीय जनता पार्टी को स्थापित करने वाली सूची में जिनका नाम गिना जाता है ऐसे नेता पवन चौहान को आखिर पार्टी आलाकमान ने तवज्जो क्यों नहीं दी और क्यों लंबे समय से उनकी अनदेखी की जाती रही यह तो समझ से परे है मगर निर्दलीय ताल ठोक कर सभी को चौकाने वाले पवन चौहान ने अब कदम पीछे हटाने से साफ मना कर दिया है। उन्होंने स्पष्ट किया है कि पार्टी आलाकमान से पूछ कर उन्होंने पर्चा दाखिल नहीं किया इसलिए वह किसी के मान मनव्वल के बाद भी अपना नामांकन वापस नहीं लेंगे। पवन चौहान के इतिहास पर नजर डालें तो वह पूर्व में नगर पंचायत के इकलौते भाजपा पृष्ठभूमि वाले चेयरमैन रहे हैं जिसके बाद उनकी धर्मपत्नी अरुणा चौहान भाजपा के टिकट पर नगर पंचायत की चेयरपर्सन बनी उसके बाद जिताऊ कैंडिडेट होते हुए भी पवन चौहान को चेयरमैन का टिकट नहीं दिया गया और उसके बाद सीट ही रिजर्व हो गई। विदित रहे कि लालकुआं नगर पंचायत में पवन चौहान और उनकी पत्नी के अलावा कोई भी भाजपा या भाजपा पृष्ठभूमि चेयरमैन नहीं बन सका है। इसके साथ ही पवन चौहान 2012 के विधानसभा चुनाव में टिकट की दावेदारी करने वाले नेता रह चुके हैं और 2017 में भी उन्होंने दावेदारी की थी मगर पार्टी आलाकमान ने उन्हें आश्वस्त किया कि अगली बार उन्हें टिकट दिया जाएगा ऐसे में 2022 के विधानसभा चुनाव में उन्हें पार्टी आलाकमान से टिकट मिलने की सकारात्मक उम्मीद थी। मगर पार्टी आलाकमान ने सिटिंग विधायक का टिकट काटते हुए भी पवन चौहान को टिकट नहीं दिया बल्कि भाजपा के बागी जो एक माह के अंतराल में ही पार्टी में वापस शामिल हुए डॉ मोहन बिष्ट को टिकट दिया गया जिससे पवन चौहान की उम्मीदों पर एक बार फिर से पानी फिर गया। इतना ही नहीं लंबे समय से कद्दावर भाजपा नेता रहे पवन चौहान को पार्टी आलाकमान द्वारा लगातार अनदेखी की जाती रही उन्हें प्रचंड बहुमत की सरकार में दर्जा राज्य मंत्री बनाना भी उचित नहीं समझा गया और तो और उन्हें सिर्फ प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य तक ही सीमित रखा ऐसे में उनके सामने पार्टी छोड़ने और निर्दलीय चुनाव लड़ने के लिए कोई विकल्प नहीं बचा था। फिलहाल परिणाम कुछ भी हो मगर पवन चौहान भारतीय जनता पार्टी को लालकुआं सीट से अच्छा खासा नुकसान पहुंचा सकते हैं और भाजपा प्रत्याशी मोहन सिंह बिष्ट की राह इतनी आसान नहीं हो सकेगी। इधर जनता में भी पवन चौहान को अपार जनसमर्थन के साथ ही सहानुभूति समर्थन भी मिल रहा है। उनके द्वारा पार्टी छोड़ने का ऐलान करते हुए अश्रुधारा रुकने का नाम नहीं ले रही थी और उन्होंने भरी महापंचायत में रोते हुए पार्टी को अलविदा कहा।