Chaitra Navratri 2022: एक ऐसा मंदिर जहां नवरात्रि के शनिवार को ही खुलते हैं माता के कपाट, सुहागिनें नहीं छू सकतीं मूर्ति

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नवरात्रि की शुरुआत हो गई है. देशभर में भक्त मां भगवती के मंदिरों में जाकर पूजा-अर्चना कर रहे हैं. आदि शक्ति देवी मां के कई मंदिर और तीर्थ स्थल हैं, जो कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक फैले हैं. उन्हीं में से एक है यूपी के सीतापुर में नैमिषारण्य तीर्थ स्थित कालीपीठ मंदिर. यह मंदिर इसलिए खास है क्योंकि यहां विराजमान मां धूमावती का दर्शन और पूजन नवरात्रि में केवल शनिवार के दिन ही किया जाता है. बाकी दिन माता के दर्शन नहीं कर सकते. ऐसे में आज माता धूमावती के दर्शन करने के लिए पूरे दिन श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती रही.
रोजाना दर्शन करने की नहीं है परंपरा
काली पीठाधी गोपाल शास्त्री बताते हैं कि दस महाविद्या उग्र देवी धूमावती देवी का स्वरूप विधवा का है. इनका वाहन कौवा है. माता सफेद वस्त्र धारण किए हुए हैं. खुले केश उनके रूप को और भी भयंकर बना देते हैं. यही वजह है कि मां धूमावती के प्रतिदिन दर्शन न करने की परंपरा है. पूरे वर्ष में नवरात्रि के अवसर पर शनिवार के दिन ही मां के दर्शन किए जाते हैं.

इस नवरात्रि दो दिन कर सकेंगे माता के दर्शन
सौभाग्य से इस नवरात्रि में भक्तों को दो शनिवार माता का दर्शन करने को मिलेगा. 9 अप्रैल को दूसरा शनिवार पड़ेगा, जिसमें माता धूमावती के दर्शन हो सकेंगे. मान्यता है कि माता के दर्शन मात्र से भक्तों को फल की प्राप्ति होती है. पूजन विधान के अंतर्गत शनिवार को काले कपड़े में काले तिल मां के चरणों में अर्पित किए जाने की परंपरा है. नवरात्रि में पड़ने वाले शनिवार के दिन महिलाएं पुत्र, आरोग्य, धन-धान की रक्षा के लिए मां धूमावती का दर्शन कर लाभ प्राप्त करती हैं.

कैसे पड़ा माता धूमावती नाम?
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, एक बार माता पार्वती को भूख लगी तो उन्होंने अपने पति महादेव से भोजन मांगा. लेकिन महादेव उस समय समाधि में लीन थे, तो उनकी इच्छा पूरी नहीं हुई. इस पर माता ने गुस्से में महादेव को ही निगल लिया. चूंकि महादेव ने हलाहल विष का पान किया था, तो माता के शरीर से धुआं निकलने लगा. तभी से माता का नाम धूमावती पड़ गया. वहीं, पति को निगलने के कारण माता विधवा स्वरूप हो गईं.

सुहागिनें नहीं छू सकती हैं माता की मूर्ति
किवदंती है कि सौभाग्यवती महिलाओं को माता का दर्शन मना है. हालांकि, मंदिर के पुजारी ने बताया कि ऐसा नहीं है. सुहागिनों को केवल माता की मूर्ति छूना मना है. बाकी पूजा का निषेध नहीं है. पुजारी ने कहा कि जो महाकाल भगवान शंकर को उदर में धारण कर सकती हैं. वह महिलाओं के सौभाग्य भक्षक काल को भी निगल कर चिर सौभाग्य का वरदान देती हैं. सौभाग्यवती महिलाओं के अलावा विधवा, विधुर, कन्याएं और बालक माता को स्पर्श भी कर सकते हैं. माता की यह मूर्ति रूप श्री नैमिषारण्य के कालीपीठ संस्थान में स्थित है.