बिना टिकट सियासी उड़ाने भर रहे भाजपाई मुसलमान

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यूपी भाजपा में जुड़े मुसलमानों को 100% पद-प्रतिष्ठा और सम्मान मिलने की गारंटी !

राजनितिक दलों से जुड़े कार्यकर्ता भले ही पार्टी में अपना जीवन लगा दें पर ज़रूरी नहीं कि उन्हें कोई पद मिले। हर धर्म-जाति,क्षेत्र, लिंग, आयु के कार्यकर्त्ता पार्टी में जितना समय दे दें पर कोई गारंटी नहीं कि पार्टी उन्हें कोई बड़ी जिम्मेदारी दे। भाजपा से जुड़े मुसलमानों के साथ ऐसा नहीं हैं। देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश की बात करें तो यहां ज्यादातर सक्रिय मुस्लिम कार्यकर्ताओं को कुछ न कुछ मिला है। 2017 से लेकर 2022 में बिना चुनावी संघर्ष के मुस्लिम युवक यूपी में मंत्री बनें।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पहले कार्यकाल में बीजेपी प्रदेश प्रवक्ता मोहसिन रज़ा मंत्री बनें और दूसरे कार्यकाल में अल्पसंख्यक मोर्चा के प्रदेश महासचिव दानिश आज़ाद अंसारी मंत्री बनाए गए। लगभग अधिकांश मुस्लिम कार्यकर्ताओं के हिस्से में कोई न कोई पद आ ही जाता है। सरकार बनी तो मंत्री से लेकर किसी आयोग, निगम, अकादमी इत्यादि के चेयरमैन या सदस्य बनने के रास्ते खुल जाते हैं। राज्यसभा से लेकर विधानपरिषद भेजे जाने की गुंजाइश से लेकर प्रवक्ता या पार्टी के अल्पसंख्यक मोर्चा में शामिल किया जा सकता है।

अन्य दलों की अपेक्षा भाजपाई मुसलमानों को पद मिलने के चांसेज इसलिए ज्यादा होते हैं क्योंकि इसकी वजह ये है कि सपा और बसपा जैसे दलों की सरकारों में मुस्लिम कार्यकर्ताओं की भीड़ होने के कारण करीब सौ में पांच कार्यकर्ताओं को ही अल्पसंख्यक संबंधित विभागों या संगठन में ओहदें मिल पाते हैं। जबकि भाजपा में कम मुस्लिम होने के कारण 95% पुराने, सक्रिय और जुझारू मुस्लिम वर्कर्स को कोई न कोई पद से नवाज दिए जाता हैं। अल्पसंख्यक आयोग, वक्फ बोर्ड, हज कमेटी, उर्दू अकादमी, फखरुद्दीन अली अहमद मेमोरियल सोसायटी, अल्पसंख्यक वित्तीय विकास निगम, मदरसा बोर्ड.. इत्यादि में ढूंढ-ढूंढ कर सक्रिय और पुराने भाजपा कार्यकर्ता समायोजित कर दिए जाते हैं।

भाजपा में मोदी युग को क़रीब एक दशक होने वाला है। इस युग का सुपर हिट नारा रहा है- सबका साथ सबका विकास। भाजपा के सुपर हीरो और देश के लोकप्रिय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उदारवाद और सर्व समाज के लिए जनहित-जन कल्याणकारी नीतियों के सफल क्रियान्वयन के बाद भी मुस्लिम समाज पूरी तरह है भाजपा के विश्वास की पटरी पर नहीं आ सका है। हांलांकि पहले की अपेक्षा अब आहिस्ता-आहिस्ता भाजपा और मुसलमानों के दरम्यान विश्वास के अंकुर फूटते नज़र आने लगे हैं। कहा जाता है कि मोदी सरकार द्वारा तीन तलाक़ से निजात पाने के बाद मुस्लिम समाज की महिलाएं भाजपा पर विश्वास करने लगी हैं। गरीब तबकों के लिए प्रधानमंत्री आवास योजना, मुफ्त शौचालय (इज्जत घर)और फ्री राशन ने दलितों-जाटव और पिछड़ों की तरह मुसलमानों को भी प्रभावित किया है।

सीएसडीएस सर्वे के आंकड़े बताते हैं कि मुस्लिम समाज ने यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में कांग्रेस और बसपा से ज्यादा भाजपा को वोट दिया। मुसलमानों ने सपा के बाद दूसरे नंबर पर भाजपा पर विश्वास जताया। भाजपा को मुस्लिम समाज का आठ फीसद वोट मिला है जबकि कांग्रेस और बसपा को सिर्फ तीन-तीन प्रतिशत वोट मिला।

जबकि मोदी युग के चुनावों में भाजपा मुस्लिमों को टिकट नहीं देती। तर्क है कि टिकट बंटवारे के लिए रिसर्च करके जिताऊ कैंडीडेट्स का चयन होता है, और पार्टी में शामिल ऐसे दमदार मुस्लिम चेहरे फिलहाल नहीं मिलते जो जिताऊ साबित हों।

शायद यही वजह है कि भाजपा ने यूपी में बिना टिकट दिए अपने मुस्लिम कार्यकर्ताओं को खूब मान, सम्मान, पद, प्रतिष्ठा देने का सिलसिला जारी रखा है। ताकि मुस्लिम समाज के ज्यादा से ज्यादा लोग पार्टी से जुड़ें और वो अपने समाज में भाजपा के प्रति विश्वास पैदा करें।

एक अनुमान के अनुसार सात वर्षों से अधिक समय से भाजपा से जुड़े यूपी के सक्रिय लगभग सभी मुस्लिम वर्कर्स को सम्मान स्वरूप पार्टी या सरकार मे़ कोई न कोई पद/जिम्मेदारी मिली है। यही वजह है कि राजनीति में अपना कैरियर बनाने का इरादा रखने वाले नौजवानों को लगने लगा है कि सपा, बसपा और कांग्रेस की अपेक्षा भाजपा में कुछ हासिल करने का अधिक स्कोप है।