भीष्म पितामह ने बाणों की शैय्या पर 58 दिन तक लेटे रहने के बाद त्यागी थी अपनी देह, इस तिथि पर होती है ये खास पूजा

खबर शेयर करें

महाभारत युद्ध में बाणों की शैय्या पर 58 दिन तक लेटे रहने के बाद पितामह भीष्म ने माघ शुक्ल अष्टमी के दिन अपनी देह त्यागी थी। इसलिए इस अष्टमी को भीष्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है। आज वो पावन दिन है। भीष्माष्टमी पितामह भीष्म के निर्वाण दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन उनके निमित्त श्राद्ध-तर्पण आदि किए जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि गंगा-पुत्र भीष्म के निमित्त जो भी भीष्म अष्टमी का व्रत, पूजा और तर्पण करता है, उसे वीर और सत्ववादी पुत्र की प्राप्ति होती है।

इस दिन एकोदिष्ट श्राद्ध भी किया जाता है, अर्थात् जिनके पिता नहीं हैं वो एकोदिष्ट श्राद्ध करते हैं। वैसे कहा जाता है इस दिन पितरों की तृप्ति के लिए सभी को एकोदिष्ट श्राद्ध करना चाहिए। भीष्म पितामह कोई साधारण पुरुष नहीं थे। वे मनुष्य रूप से साक्षात देवता वसु थे। उन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था। अर्थात् जब तक वे न चाहें काल उन्हें स्पर्श भी नहीं कर सके ।

महाभारत युद्ध में जब उनका शरीर बाणों से पूरी तरह छलनी हो गया था फिर भी उनके प्राण नहीं निकले। वे बाणों की शैय्या पर 58 दिन लेटे रहे, मात्र इसलिए किउस समय सूर्य दक्षिणायन चल रहा था। शास्त्र कहते हैं सूर्य के उत्तरायण में मृत्यु होने पर मनुष्य को सद्गति प्राप्त होती है और वह जन्म-मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है। इसलिए पितामह ने सूर्य की मकर संक्राति से प्रारंभ हुए उत्तरायण की प्रतीक्षा की।

मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी का दिन
सूर्य के उत्तरायण होने पर युधिष्ठिर, सगे-संबंधी , ऋषि आदि पितामह के पास पहुंचे तो उन्होंने कहा सूर्य के उत्तरायण होने के पश्चात माघ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी का दिन आ गया है, अब मैं अपनी देह त्याग रहा हूं। इतना कहते हुए पितामह ने अपना शरीर छोड़ दिया। मार्गशीर्ष शुक्ल 14 से प्रारंभ होकर महाभारत का युद्ध कुल 18 दिन चला था जिसमें दसवें दिन भीष्म पितामह अर्जुन के तीरों से घायल होकर शर शैय्या पर लेट गए थे। इसके बाद उन्होंने 58 दिनों तक शर शैय्या पर लेटे रहने के बाद माघ शुक्ल अष्टमी को अपने प्राण त्यागे।