रावण ने अपने प्राण त्यागने से पहले लक्ष्मण को तीन बडी शिक्षाएं दी जो जीवन में बड़ी उपयोगी हैं
त्रेता युग में राम और रावण का प्रसंग आधारित रामायण की कहानी के मुख्य पात्रों से भला कोन परिचित ना होगा और भारत में तो रामायण की कहानी सर्वथा प्रचलित हे। जिसके प्रमुख पात्रों में उस समय के महाज्ञानी और सूरमा राजा रावण जो सभी विधाओं का धनी था। लेकिन अपने अभिमान के कारण अपने चरित्रहीन आचरण से उस समय के राज घरानो पर और पसंद आने वाली वस्तुओं पर अवैध कब्जा करना उसका काम ही बन चुका था लेकिन उसकी छल कपट नीति से जब भगवान् श्री राम की पत्नी सीता मैया को जब रावण के द्वारा अपहरण किया गया तो राम रावण का घोर युद्ध में रावण की पराजय हुई। जिसके बाद मरणासन अवस्था में रावण के पास भगवान् राम ने लक्ष्मण को भेजा और कहा कि रावण से विनती करो कि वे उन्हें शिक्षा दें इसपर लक्ष्मण ने ऐसा ही किया और रावण ने उन्हें जीवन के तीन महत्वपूर्ण सूत्र दिए।
राम राज्य का सेतु पुल
राम राज्य का सेतु पुल
पहली शिक्षा
रावण ने कहा शुभ कार्य जितनी जल्द हो पाए उसे शीघ्र ही पूर्ण कर देना चाहिए। यह इसलिए जरूरी हे क्योंकि रावण पहले भी श्री राम को जानता था कि यह प्रभु के अवतार हो सकते हैं। लेकिन उन्होंने प्रभु से सीधा संपर्क नहीं किया और उन्हें पहचानने में देर कर दी जिससे उन्होंने अपने जीवन से ही हाथ धो दिया। और यदि में पहले ही प्रभु राम से भेंट कर लेता तो में अजेय रहता और मेरे राज्य को अक्षय बना लेता।
दूसरी शिक्षा
दुश्मन चाहे छोटा हो लेकिन कभी भी उसे कमजोर ना समझो। क्योंकि जिन्हें में वानरों की सेना समझता था उसी सेना ने अपनी कुशल रणनीति के कारण मेरी समूल सेना का विनाश कर दिया। जिसपर मेने कोई बड़ी योजना नहीं बनायी क्योकि में उन्हें तुच्छ समझता था जिसकी वजह से मेरा अतिविश्वास ही मेरा विनाश कर गया।
तीसरी शिक्षा
तीसरी और अंतिम बात जो रावण ने लक्ष्मण को बतायी उसमे कहा कि अपने बड़े राज स्वयं तक ही सीमित रहें तो ही सुरक्षित हैं। परन्तु मेने अपना सबसे बड़ा राज मृत्यु का राज भी अपने भाई विभीषण को बताया हुआ था जिसके कारण मेरा भाई जब मेरे ही विरुध्द हो गया तो इसके कारण मेरा विनाश हो गया। जो मेरे जीवन की आख़िरी गलती बन गई।
इसी प्रकार की रामायण की कहानी बड़ी सीख देती हे और यह बताती हे कि ज्ञान अगर अपने शत्रु से भी लेना पड़े तो बेझिजक लेना चाहिए। अगर सीख के रूप में मिले तो उसी रूप में और अगर परास्त हुए शत्रु से मित्रवत व्यवहार से विनम्रता पूर्ण ढंग से लें तो यह आदर्श स्थति होगी।
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