एक मासूम की 10 साल बाद अपने परिवार से हुई मुलाकात उसके बाद क्या हुआ पढ़ें पूरी खबर

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जब छह साल का था, तो ठीक से बोल भी नहीं पाता था। मां तो जन्म देकर ही चल बसी। पिता ने बड़े लाड़ प्यार से नन्ही जान को पाला और फिर जब छह साल का हुआ, तो कहीं खो गया। कारण मानव तस्करी का रहा होगा या गुमशुदगी का, लेकिन जब दस साल बाद अपनों से मिला, तो आंसुओं के बीच वह सिसकियां देखने वाली थीं, जिनमें बेटे के बिछडऩे का गम से ज्यादा उसके मिलने की खुशियां थीं।
हम बात कर रहे हें राजस्थान के उस बच्चे की, जो छह साल की उम्र में गुम हो गया और अब 16 साल की उम्र में अपनों से मिला है। जानकारी के अनुसार हरियाणा एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग पंचकूला यूनिट ने 10 साल से गुमशुदा राजस्थान के बच्चे को उसके परिवार से मिलवा कर उनको एक अनमोल तोहफा दिया है। पुलिस प्रवक्ता ने बुधवार को बताया कि एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट पंचकूला में तैनात एएसआई राजेश कुमार ने गुमशुदा बच्चों की तलाश में चिल्ड्रन होम राजपुरा जिला पटियाला पंजाब में वेलफेयर ऑफिसर से संपर्क किया। वहां एक बच्चा था जिसके परिवार का पता लगाने में समस्या आ रही थी।

बच्चे से काउंसलिंग के दौरान एक शब्द ‘दलघर’ के बारे में पता चला जिसे आधार बनाकर नेट पर सर्च किया गया, तो छह गाँवों की जानकारी मिली। सभी राज्यों में संपर्क किया गया तो ‘दलघर’ जिला सिरोही, राजस्थान, के बारे में पता चला और वहां गांव में बच्चे का फोटो भेजा गया तो पिता द्वारा अपने बच्चे को पहचाना और वीडियो कालिंग करवाई गई। पिता शंकर लाल ने बताया कि मेरा बेटा 10 साल पहले 2013 में गांव से गुम हुआ था और उस समय उसकी आयु छह वर्ष थी। बच्चे के जन्म के बाद ही उसकी मां की मृत्यु हो गई थी। सीडब्ल्यूसी अमृतसर के आदेश से बच्चे के सभी कागज कार्रवाई करने नाबालिग को उसके पिता के सुपुर्द किया गया। पुलिस प्रवक्ता ने बताया कि सीडब्ल्यूसी चेयर पर्सन, शिमला ने एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट, पंचकूला के पास ई-मेल द्वारा जानकारी दी कि उनके पास दो नाबालिग बच्चे,उम्र 11 वर्ष और आठ वर्ष के रह रहे है और भाषा से हरियाणा के लगते है। उक्त जानकारी होने पर एएसआई राजेश कुमार ने दोनों नाबालिग बच्चों के बारे जानकारी प्राप्त की। काउंसिलिंग के दौरान एक 11 वर्षीय बच्चे ने पिता का नाम नरेश (जींद) बताया। जींद में स्थानीय पुलिस से संपर्क किया गया और पहचान होने पर परिवार से वीडियो कॉलिंग कराई गई, वहीं दूसरा बच्चा आठ वर्ष का ट्रेन से अप्रैल में शिमला पहुंच गया था, उसका परिवार कालका पंचकूला में ढूंढा गया। नाबालिग बच्चे की मां, गरीब व अनपढ़ थी, इसलिए बच्चे को लाने का खर्चा भी एएचटीयू द्वारा ही वहन किया गया।