CM की एक घोषणा ने चढ़ाया प्रदेश का सियासी पारा

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देहरादून: उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 में प्रदेश का सियासी पारा सातवें आसमान पर है। दो दिन बाद यानी 14 फरवरी को प्रदेश की जनता अपनी नई सरकार चुनेगी। मतदान से पहले बीजेपी ने वोटरों को रिझाने के लिए बड़ा दांव खेला है।

हिजाब विवाद के बीच उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने एक बड़ा बयान शनिवार को जारी किया है। कहा कि भाजपा की सरकार बनते ही उत्तराखंड में ‘यूनिफॉर्म सिविल कोड’ लागू किया जाएगा। इसके लिए रिटायर्ड जजों, प्रबुद्धजनों व समाज के विभिन्न वर्गों की एक कमेटी बनाई जाएगी, जो ‘यूनिफॉर्म सिविल कोड’के लिए ड्राफ्ट तैयार करेगी।

कहा कि विवाह, तलाक, उत्तराधिकार,जमीन-जायदाद जैसे विषयों पर सभी नागरिकों के लिए एक समान अधिकार होगा, जाहे वह किसी भी धर्म या जाति का क्यों न हों। धामी ने साफतौर पर कहा कि उत्तराखंड की सांस्कृतिक-आध्यात्मिक विरासत की रक्षा के लिए भाजपा सरकार अपने शपथ ग्रहण के तुरंत बाद एक कमेटी का गठित करेगी, जिससे सभी नागरिकों के लिए समान कानून बनेगा।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने उत्तराखंड में बीजेपी सरकार की वापसी पर यूनिफॉर्म सिविल कोड या समान नागरिक संहिता लागू करने की घोषणा की है। यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर प्रदेश में आम जनता क्या सोचती है, इसी पर एक न्यूज़ एजेंसी ने देहरादून में लोगों की राय जानी। यूनिफॉर्म सिविल कोड पर प्रदेश की जनता की राय मिली-जुली है। यूनिफॉर्म सिविल कोड पर पेशे से वकील रजिया बेग का कहना है कि ये सिर्फ हिंदू और मुस्लिमों को बांटने की साजिश है। लेकिन आज हिन्दू और मुसलमान इन सब चीजों को समझ चुके हैं। उस पर इस तरह की बयानबाजी का असर नहीं होगा

उन्होंने कहा कि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी प्रदेश में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने की बात कह रहे हैं। लेकिन क्या ये सब के लिए है या फिर कुछ लोगों के लिए ही है। क्योंकि यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत कई बीजेपी शासित राज्यों के लिए मुख्यमंत्री कौन से कपड़े पहनते हैं। वह यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से कहेंगे कि वह सीएम हैं और इसीलिए भगवा नहीं पहन सकते हैं।

भारतीय लोकतंत्र में समानता का अधिकार है, लेकिन किसी पर पहनावे और अन्य चीजों को लेकर कोई पाबंदी नहीं है। इसलिए यह सीएम का बिल्कुल भी समानता को एक करने का बयान नहीं है। वहीं युवा सौरभ नौटियाल का कहना है कि सीएम के बयान का युवा स्वागत नहीं करते हैं, क्योंकि संविधान को नहीं बदला जा सकता है। इस फैसले से कोई भी फायदा नहीं होने वाला।

वहीं ऋतु का कहना है कि यह सीएम का स्वागत योग्य फैसला है। आज लड़कियां चांद पर भी कदम रख चुकी हैं, लेकिन फिर भी उन्हें पर्दे में रखने के लिए दबाव बनाया जाता है, जो सही नहीं है। इसलिए सीएम धामी का यह फैसला स्वागत योग्य होगा।

यूनिफॉर्म सिविल कोड या समान नागरिक संहिता का मतलब विवाह, तलाक, बच्चा गोद लेना और संपत्ति के बंटवारे जैसे विषयों में सभी नागरिकों के लिए एक जैसे नियम होना है। दूसरे शब्दों में कहें तो परिवार के सदस्यों के आपसी संबंध और अधिकारों को लेकर समानता होना। जाति-धर्म-परंपरा के आधार पर कोई रियायत न मिलना। इस वक़्त हमारे देश में धर्म और परंपरा के नाम पर अलग नियमों को मानने की छूट है। जैसे -किसी समुदाय में पुरुषों को कई शादी करने की इजाज़त है तो कहीं-कहीं विवाहित महिलाओं को पिता की संपत्ति में हिस्सा न देने का नियम है।

दरअसल धामी ने कहा कि अब समाज में धर्म, जाति और समुदाय की पारंपरिक रूढ़ियां टूट रही हैं, इसलिए अब समय आ गया है कि देवभूमि में सभी नागरिकों के हितों को सम्मान देते हुए, सर्वस्पर्शी विकास की अवधारणा को सुनिश्चित करते हुए ‘समान नागरिक-समान अधिकार’ लागू किया जाए।

भाजपा सांसद अनिल बलूनी ने सीएम धामी के बयान की सराहना की है। कहा कि इससे समाज में एकरूपता आएगी। बलूनी का कहना है कि सीएम धामी उत्तराखंड की बेहतरी के लिए कई निर्णायक फैसले ले रहे हैं। भाजपा संगठन मंत्री बीएल संतोष ने भी धामी के बयान को ऐतिहासिक करारा दिया है।

वहीं, सीएम धामी के बयान के बाद उत्तराखंड में एक बार फिर सर्द मौसम में सियासत गर्म हो गई है। कांग्रेस की प्रवक्ता गरिमा दसौनी ने सीएम के बयान को सिर्फ और सिर्फ एक जुमला करार दिया है। कहा कि भाजपा अपनी हार से बचने के लिए ऐसे बयान जारी कर रही है। पिछले पांच सालों से बीजेपी ने विकास के लिए कुछ नहीं किया और अब वोटरों को लुभाने के लिए ऐसे बयानबाजी कर रही है।